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हरिद्वार, 28 जनवरी (हि.स.)। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय और भारतीय ज्ञान परम्परा प्रभाग, शिक्षा मन्त्रालय भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में द्वि दिवसीय कार्यशाला हुई।
इस कार्यशाला का विषय अनुसंधान प्रस्ताव लेखन रहा। कार्यशाला के माध्यम से अनुसन्धान को बढ़ावा देने का कार्य किया गया। इस कार्यशाला में 58 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम के अन्त में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया।
द्वितीय दिवस के कार्यक्रम में प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालंकार ने वर्तमान समय में प्राचीन शिक्षा व्यवस्था की प्रतिस्थापना कैसे हो इस विषय पर अनुसन्धान प्रस्ताव लिखकर सबसे समाने उजागर किया। प्रो. कीर्ति भट्टाचार्या ने ज्ञान व ब्रह्माण के स्तरों पर शब्दों की भूमिका पर अनुसन्धान को प्रस्तुत किया। यज्ञदत्त आर्य ने मानसिक तनाव पर अष्टांग योग की भूमिका पर प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस अवसर पर प्रो. विजय लक्ष्मी, डॉ. आशु राधा, मंजू पाण्डेय आदि ने अनुसंधान प्रस्ताव प्रस्तुत किये।
कार्यक्रम के समापन पर प्रो. नित्यानन्द अवस्थी ने अनुसन्धान प्रस्ताव लेखन के प्रकार को स्पष्टता के साथ बताया। डॉ. सचिन वशिष्ठ ने भारतीय ज्ञान परम्परा प्रभाग शिक्षा मन्त्रालय के अनुसन्धान विषयक निर्देशों से अवगत कराया। समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति प्रो. दिनेशचन्द्र शास्त्री ने कार्यक्रम को उपयोगी बताते हुए कहा कि इस प्रकार की कार्यशालाएं शोधार्थियों के लिए अवश्य होनी चाहिए। अनुसन्धान ही व्यक्ति की एक नई पहचान को स्थापित करता है।
आईआईटी खडगपुर से आये डॉ. पीयूष कान्त पाल ने संस्कृत विषय के अनुसन्धान प्रस्ताव किस प्रकार से हो सकते हैं, उनका निर्माण किन बिन्दुओं को ध्यान में रखकर करना चाहिए। इस अवसर पर गुरुकुल कांगड़ी के अनुसंधान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. विवेक गुप्ता ने अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया।
इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक डॉ. वेदव्रत ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी सदस्यों का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर डॉ. मौहर सिंह मीणा, डॉ. प्रकाश पन्त, डॉ. बबलू वेदालंकार, डॉ. भारत वेदालंकार, डॉ. भगवानदास, डॉ. शिवकुमार चौहान आदि उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/ रजनीकांत