अजय कुमार शर्मा
सोहराब मोदी (जन्म: 1897) की मिनर्वा मूवीटोन कम्पनी अपने जमाने का प्रतिष्ठित फिल्मी कंपनी थी। सोहराब मोदी निर्माता-निर्देशक और अभिनेता की तिहरी भूमिका में होते थे। समाज और इतिहास की समझ के साथ मोदी की थिएट्रिकल पारसी संवाद-शैली ने उन्हें आम लोगों में बेहद लोकप्रिय बना दिया था। उनकी बुलंद और गूँजती आवाज सचमुच उनकी विशेषता थी, जिसको सुनने के लिए उनकी फिल्मों को अंधे व्यक्ति भी देखने आते थे।
सोहराब मोदी का मानना था कि काम बड़े और बेजोड़ करने चाहिए, इसीलिए वे अपने बैनर 'मिनर्वा मूवीटोन' की हर फिल्म भव्य पैमाने पर निराले ढंग से बनाते थे, चाहे वह 'जेलर' हो या 'पुकार', 'सिकंदर' हो या 'पृथ्वीवल्लभ।' वे के. आसिफ की 'मुगल-ए-आज़म' (1960) से बहुत पहले कई क्लासिक फिल्में बना चुके थे। भारत की पहली टेक्नीकलर फिल्म 'झाँसी की रानी' उन्होंने 1953 में बना दी थी। इसके निर्माण पर उन्होंने उस जमाने में जब लाख-दो लाख में फिल्में बन जाती थीं, तब अस्सी लाख रुपए खर्च कर दिए थे। इस फिल्म के लिए मोदी ने उपकरण और टेक्नीशियन हॉलीवुड से मँगाए। इसमें मोदी ने राजगुरु और उनकी पत्नी मेहताब ने झाँसी की रानी का किरदार निभाया।
प्रेस ने इस फिल्म की बहुत प्रशंसा की, लेकिन दर्शकों ने इसे अनदेखा कर दिया। लेकिन मोदी सिर्फ दहाड़ने वाले शेर ही नहीं थे, शेर दिल भी थे, जिन्होंने दर्शकों को तोहफे देना जारी रखा। कोई और होता तो टूट जाता, लेकिन सोहराब ने शांतचित्त रहकर एक और फिल्म बना डाली- 'मिर्जा गालिब' (54)। मोदी के दर्शक लौट आए। बात गालिब जैसे शाश्वत शायर की हो, गायन सुरैया और तलत मेहमूद का हो और हीरो 'बैजू बावरा' फेम भारतभूषण हो तो फिल्म को सफल होना ही था। भारत-सरकार ने इसे राष्ट्रपति का स्वर्ण-पदक देकर सोहराब मोदी की रचनाधर्मिता पर सम्मान की मोहर लगा दी थी।
सन् 1935 से 69 तक के पैंतीस साल के फिल्मी सफर में उन्होंने 62 फिल्मों का सृजन किया। इनमें पारसी थिएटर के प्रभाव को देखा जा सकता है क्योंकि वे स्वयं इसी पृष्ठभूमि से आए थे। 'मिनर्वा मूवीटोन' की स्थापना उन्होंने 1935 में की थी। 'मिनर्वा' कला एवं व्यवसाय की रोमन देवी का नाम है। धार्मिक और आत्मानुशासित सोहराब मोदी गौर वर्ण, ऊंची कद-काठी और शानदार व्यक्तित्व के धनी थे। वे भारत के इतिहास और अंग्रेजी, हिन्दी तथा उर्दू भाषाओं के ज्ञाता थे। भारत सरकार ने उन्हें इक्यासी वर्ष की उम्र में 1979 में 'दादासाहेब फालके अवॉर्ड' से सम्मानित किया था।
सोहराब मोदी ने दर्जनों फिल्में बनाईं, जिनमें मात्र छह ऐतिहासिक थीं, मगर लोग उन्हें ऐतिहासिक-फिल्मों के निर्माता के रूप में ही ज्यादा जानते हैं। 'पुकार' के बाद 'पृथ्वीवल्लभ' (43), 'शीशमहल' (50), 'राजहठ' (56) और 'नौशेरवान-ए- आदिल' (57) उनकी पीरियड-फिल्में थीं। सोहराब ने सामाजिक-फिल्मों का निर्माण भी उसी जोश और जज्बे के साथ किया। 'जेलर' नामक फिल्म उन्होंने दो बार बनाई- 38 और 58 में। पहली जेलर की नायिका लीला चिटणीस थीं और दूसरी की कामिनी कौशल। 'जेलर' (58) के संगीत-निर्देशक मदनमोहन थे।
'भरोसा', 'शमा', 'वारिस', 'घर-घर में दिवाली', 'फिर मिलेंगे', 'परख', एक दिन का सुल्तान', 'मझधार', 'कुंदन', 'दो गुण्डे', 'मेरा घर मेरे बच्चे' और 'समय बड़ा बलवान' उनकी सामाजिक-फिल्में थीं। उन्होंने धार्मिक-फिल्म 'नरसिंह अवतार' का निर्माण भी किया। लेकिन मिनर्वा मूवीटोन की आर्थिक दशा बिगड़ती चली गई। 1968 में यह संस्था बंद कर दी गई। उनकी योजना 'अशोक द ग्रेट' बनाने की भी थी। वे 'पुकार' का रीमेक भी बनाना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने दिलीप कुमार, सायरा बानू, शशिकपूर, राखी का चयन भी कर लिया था। उन्होंने 'मीना कुमारी की अमर कहानी' बनाने का प्रयत्न भी किया, जो विफल रहा। सोहराब मोदी अभिनेता के रूप में अंतिम बार कमाल अमरोही की 'रजिया सुल्तान' में नजर आए थे। बुलंद आवाज और बुलंद विचारों के मालिक सोहराब मोदी का निधन 28 जनवरी 1984 को हुआ था।
चलते चलते
इतने बुलंद व्यक्तित्व के मालिक मोदी कितने सहज और सरल भी थे इसका एक किस्सा उन्हीं के समय के प्रसिद्ध खलनायक और चरित्र अभिनेता के. एन सिंह ने एक इंटरव्यू में साझा किया था। हुआ यह कि उनकी फिल्म सिकंदर (1943) की नायिका वनमाला रहीं थी जो बाद में चरित्र अभिनेत्री बन गई थी। एक दिन वनमाला के पास सोहराब मोदी का फ़ोन आया कि वे झांसी की रानी फिल्म बना रहे हैं जिसमें झांसी की रानी का रोल उनकी पत्नी मेहताब कर रही हैं क्या वह उनका डमी रोल करना चाहेंगी। यह उन्हें अपमानजनक लगा और उन्होंने रोते हुए यह बात अपने साथ काम कर रहे के. एन सिंह को बताई। उन्हें भी यह बुरा लगा और वे सीधे मोदी जी के पास गए और पूछा, आपने वनमला को मेहताब की डमी बनने को क्यों कहा।
“वह बड़ी अच्छी घुड़सवारी कर लेती है जबकि मेहताब घोड़े पर बैठना भी नहीं जानतीं।
“लेकिन क्या आप भूल गए कि वनमाला आपकी 'सिकंदर' की नायिका रही हैं और 'सिकंदर' अभी भी खूब चल रही है?
न मैं हक़ीक़त को भूलता हूँ, न कभी भूलूँगा।”
तो फिर आपने अपनी नायिका को डमी बनने का आग्रह कर उसे अपमानित क्यों किया ?
उन्हें अपमानित करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। घुड़सवारी में उनकी कुशलता को सामने रखकर ही...
“लेकिन वनमाला तो इसे अन्यथा लेकर अपमानित महसूस कर रही हैं।
“यदि ऐसा है तो मैं उनसे माफ़ी माँगता हूँ। वह कहाँ हैं?
मेकअप रूम में बैठकर रो रही हैं।
“तो चलिए। आपके सामने ही मैं उनसे माफ़ी माँगता हूँ।”
इतना बड़ा निर्माता-निर्देशक, अभिनेता सोहराब मोदी, लेकिन अपनी भूल एहसास होते ही बड़प्पन की ख़ाल उतारकर वनमाला से माफ़ी माँगने के लिए तैयार हो गया। सच में अब ऐसे अनोखे कलाकार कहां....
(लेखक, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं।)