-बीमारियों का होता है अचूक इलाज
बागेश्वर, 28 जनवरी (हि.स.)। उत्तरायणी मेले में दारामा, जोहार, व्यास, चौंदास, दानपुर से आए जड़ी-बूटी के व्यापारियों के सामानों की भोटिया बाजार में जबरदस्त मांग रहती है। पेट, सिर, घुटने आदि दर्द के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली गंदरेणी, जम्बू, कुटकी, डोला, गोकुलमासी, ख्यकजड़ी आदि जड़ी-बूटी को अचूक इलाज माना जाता है।
उत्तरायणी मेले में पिथौरागढ़ जिले के धारचूला,दार्चुला,मुनस्यारी,जोहार,दारमा, व्यास और चौंदास आदि क्षेत्रों के व्यापारी हर साल व्यापार के लिए आते हैं। हिमालयी जड़ी-बूटी को लेकर आने वाले इन व्यापारियों का हर किसी को बेसब्री से इंतजार रहता है। हिमालय की जड़ी-बूटियां ऐसी दवाइयां हैं जो रोजमर्रा के उपयोग के साथ ही बीमारियों में दवा का भी काम करती हैं। दारमा के बोन गांव निवासी किशन सिंह बोनाल बताते हैं कि जंबू की तासीर गर्म होती है। इसे दाल में डाला जाता है। गंदरायण भी बेहतरीन दाल मसाला है। यह पेट, पाचन तंत्र के लिए उपयोगी है। कुटकी बुखार में, पीलिया में, मधुमेह में, न्यूमोनिया में, डोलू गुम चोट में, मलेठी खांसी में, अतीस पेट दर्द में, सालम पंजा दुर्बलता में लाभदायक होता है।
उत्तरायणी मेले में जंबू, गंदरायण, डोलू, मलेठी आदि दस ग्राम 50 रुपये में, कुटकी 60 रुपये तोला के हिसाब से बिक रहा है। इसके साथ ही भोज पत्र, रतन जोत सहित कई प्रकार की धूप गंध वाली जड़ी बूटियां भी बिक रही हैं। हिमालयी इलाकों में पैदा होने वाली कीमती जड़ी-बूटियां सदियों से परंपरागत मेलों के जरिए विभिन्न इलाकों तक जाती रही हैं।
व्यापारी चैत सिंह ने बताया कि मूली के ये चिप्स बर्फ की हवा में सुखाए जाते है। इनकी सब्जी स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्धक होती है। बताया की कुमाउं की काशी कहे जाने वाले बागेश्वर में उत्तरायणी मेले में हिमालयी क्षेत्रों से जड़ी बूटी लाने वाले व्यापारियों का सालभर बेसब्री से इंतजार करते हैं। माघ माह की उत्तरायणी में यहां व्यापारियों और खरीदारों का तांता लगा रहता है।
उत्तरायणी मेला देखने आने वालों के लिए भोटिया बाजार मुख्य आकर्षण है। आज भी स्थानीय व बाहर से आने वाले मेलार्थी भोटिया बाजार के उत्पादों को विश्वसनीयता की नजर से देखते हैं। मेले का स्वरूप बदलने के बावजूद यह बाजार अपनी साख को पूर्ववत बनाए रखने में सफल रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार/लता प्रसाद/रामानुज