धार, 23 जनवरी (हि.स.)। नर्मदा साहित्य मंथन -भोजपर्व के दूसरे दिन सोमवार को माँ वाग्देवी के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुआ । प्रथम सत्र में “भोजशाला एक स्थापित विश्वविद्यालय” विषय पर सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता एवं भारतीय पुरातत्व संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ धर्मवीर शर्मा द्वारा सत्र को संबोधित किया।
उन्होंने कहा हमारी समृद्धि का प्रमाण यह हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भारतीय लोग मेसोंपोटामिया की सभ्यता में व्यापार करते थे। वहां मेहलुआ से लोग मेसोंपोटामिया आते थे, उनका मानना है कि ये मेहलुआ ही आज के समय का मालवा है। महाराजा विक्रमादित्य साहित्य संकलन के लिए अपने राज्य में गोष्ठी आयोजित करते थे, ये साहित्य मंथन भी इसी प्रकार का आयोजन हैं। भोजशाला ही नहीं पूरे भारत में मुग़लों ने पुरातत्व महत्व के अनेक स्मारक तोड़े और उनसे मस्जिद का निर्माण किया। कुबुम मीनार 25° दक्षिण में झुकी हुई है। इसके नीचे 64 फ़ीट का अधिष्ठान है। मीनार में 27 झरोखे हैं जिससे 27 नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता था। कुतुब मीनार महाराजा विक्रमादित्य के द्वारा बनाई गई वेधशाला है। मुग़ल शासकों द्वारा विध्वंस करके ही मस्जिदें बनाई हैं। आवश्यकता हैं कि व्यापक शोध और खुदाई से तथ्य संकलित करे तो ये प्राप्त होगा कि ये हिंदू मंदिर और पाठशाला, गुरुकुल, विश्वविद्यालय ही होंगे। उन्होंने साहित्यकारों एवं विद्यार्थियों को पुरातत्व शोध के लिए आगे आने का आवाहन किया ताकि भारत का स्वाभिमान स्थापित किया जा सके।
वर्तमान समय में संस्कृति की रक्षा बहुत आवश्यक हैं- प्रशांत पोल
द्वितीय सत्र वरिष्ठ लेखक एवं विचारक प्रशांत पोल ने “सांस्कृतिक धरातल पर भारत को बांटने के प्रयास” विषय पर संवाद स्थापित किया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ अंग्रेजों ने यह विमर्श स्थापित करने का प्रयास किया गया कि भारत कभी एक था ही नहीं और इस अंग्रेज़ी मानसिकता को स्थापित करने में वो सफल भी रहे। भिन्न भाषाओं के लोग एक साथ नहीं रह सकता इस आधार पर आगे चलकर हमारे राज्यों को बाटा गया।
ब्रिटिश विचारधारा को वामपन्थ ने बढ़ाया : केतकर
तृतीय सत्र के वक्ता ऑर्गेनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने “वामपंथ का कलुष” विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा ब्रिटिश विचारधारा को बढ़ाने का कार्य वामपन्थ ने किया हैं। भारत के विभाजन पर अधिकृत रूप से रिज़ोल्यूशन लाने का कार्य मुस्लिम लीग के बाद अगर किसी पार्टी ने किया तो वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया थी। देश के टुकड़े-टुकड़े का विचार मूलतः वामपन्थ का रहा हैं। समाज में मुस्लिम विचार को स्थापित करने का कम बॉलीवुड का कर रहा हैं। इस्लाम को सनातन बेहतर दिखाकर इस्लाम के प्रति आदर दिखाना एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा रहा हैं। ताकि हमारे युवाओं में हिंदू धर्म के प्रति आस्था कम हो।
उन्होंने युवाओं से कहा कि भूगोल को इतिहास के पन्नों से देखना शुरू शुरू करना होगा। इस्लाम और क्रिश्चनिटी कहा-कहा कब कब आये और इन्होंने संस्कृति को कैसे खत्म किया इसके प्रमाण मिलने लगेंगे। भारत पूरे विश्व में अकेली ऐसी धरती है जिसमे सर्वधम को मानने या ना मानने का अधिकार है, यह भारत की ताक़त हैं। हम सनातन धर्म को मानने वाले है हम हिंसा के रास्ते से चलने वाले लोग नही है। हम लोकतंत्र के रास्ते इस विचार धारा को उखाड़ फेकेंगे। सत्र संचालन श्री सिद्धार्थ शंकर गौतम ने किया।
चौथा सत्र “भारतीय संविधान -भारतीय संस्कृति का दर्पण” विषय पर केंद्रित रहा । जिसमे वक्ता सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संविधान विशेषज्ञ डी के दुबे रहे। उन्होंने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के निर्माण का आधार अर्थव्यवस्था हैं। इसलिए उनके संविधान आवश्यकता के अनुसार बदलते रहते हैं जबकी हमारे संविधान का विचार समग्र और व्यापक रूप से करके ही इसका निर्माण किया गया हैं।