हंसा मेहता: महिला अधिकारों के प्रति सजग नेत्री
स्वतंत्रता दिवस विशेष/ आधी आबादी की भागीदारी प्रतिभा कुशवाहा देश की आजादी में ऐसी बहुत सी महिलाओं
हंसा मेहता


स्वतंत्रता दिवस विशेष/ आधी आबादी की भागीदारी

प्रतिभा कुशवाहा

देश की आजादी में ऐसी बहुत सी महिलाओं का योगदान है जो संभ्रांत और अमीर परिवारों से आईं। जाहिर है इन महिलाओं को उच्च शिक्षा और वह भी विदेशों से भी प्राप्त हुई, जिसका उपयोग उन्होंने न केवल देश की आजादी वरन् एक बेहतर आजाद देश के निर्माता के तौर पर किया। ऐसी महिलाओं में हंसा मेहता का नाम शुमार किया जाता है, जिन्होंने अपनी उच्च शिक्षा-दीक्षा का उपयोग बेहतर भारत बनाने में किया। महिलाओं की समानता, स्वतंत्रता और बराबरी के अवसरों की उपलब्धता के प्रति उनका योगदान उल्लेखनीय है।

हंसा मेहता जो बचपन में हंसाबेन कहलाती थीं, उनका जन्म सूरत में 03 जुलाई, 1897 में हुआ। उनके पिता मनुभाई मेहता बड़ोदरा के दीवान थे। उन्हें बड़ोदरा विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र विषय से उच्च शिक्षा ग्रहण की, साथ ही साथ लंदन गईं जहां उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की। वहीं वे स्वतंत्रता सग्राम की प्रमुख दो महिलाओं सरोजनी नायडू और राजकुमारी अमृतकौर के संपर्क में आईं। इन्हीं से प्रभावित होकर वे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गईं। हंसाबेन महिला आंदोलन और सार्वजनिक सभाओं में भाग लेना शुरू किया। लंदन में पढ़ाई खत्म करने के बाद दूसरे देशों के शिक्षण संस्थानों, सामाजिक कार्यों आदि को जानने-समझने के उद्देश्य से वे अमेरिका की यात्रा पर भी गईं। यहां वे मताधिकार करने वाली महिलाओं से मिलीं। यहां से वे फ्रांसिस्को, शंघाई, सिंगापुर और कोलंबो होती हुईं देश लौट आईं। इन यात्राओं से न केवल वे समृद्ध हुई बल्कि महिला अधिकारों और अन्य सामाजिक कार्यों के प्रति अधिक सजग हो गईं।

देश लौटकर वे यहां के सामाजिक कार्यों में सक्रिय हुईं। यहीं उनकी मुलाकात डाॅ. जीवराज एन. मेहता से हुई। वे उनसे काफी प्रभावित हुईं। 1924 को उन्होंने डाॅ. मेहता से विवाह कर लिया। इस विवाह का उस समय काफी विरोध हुआ क्योंकि यह उस दौर का प्रतिलोम विवाह था। लेकिन हंसाबेन ने जाति से बहिष्कृत होने की भी परवाह न की। डाॅ. मेहता महात्मा गांधी से भी जुड़े रहे हैं। विवाह के बाद ही डाॅ. मेहता किंग एडवर्ड मेमोरियल हाॅस्पिटल और जीएस मेडिकल काॅलेज में डीन बन गए। इसी कारण ये दंपति मुंबई आकर बस गया। मुंबई में उस समय आजादी के आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों का जोर था। इसलिए हंसाबेन के लिए यहां काम के कई अवसर थे। हंसाबेन ने यहां शैक्षणिक और सामाजिक कल्याण के कामों से अपना योगदान देना शुरू किया। यहां पर उन्होंने गुजरात महिला सहकारी समिति, बंबई नगरपालिका विद्यालय समिति, राष्ट्रीय महिला परिषद, अखिल भारतीय महिला सम्मेलन आदि सामाजिक आंदोलन चलाने वाली संस्थाओं से जुड़कर काम किया।

देश की आजादी के बाद भी वे अपनी योग्यता और कामों को विस्तार देती रहीं। वे संविधान सभा में उन 15 महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने संविधान को संजाने-संवारने में अपनी भूमिका अदा की। हंसा मेहता ने बाम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल की सीट पर 1937-39 और 1940-49 तक रहीं थी। वे संविधान सभा में बाम्बे का प्रतिनिधित्व कर रही थीं। संविधान सभा में उनका महत्वपूर्ण योगदान समान नागरिक संहिता को संविधान का एक न्यायोचित हिस्सा बनाने में उनका समर्थन था। वे हिन्दू कोड बिल की कमेटी में भी रहीं। असल में वे महिलाओं की स्थिति को प्रभावित करने वाले सभी पक्षों जैसे मौलिक अधिकार, नागरिक अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, संपत्ति, विवाह, परिवार में स्थान आदि के प्रति बेहद जागरूक और संवेदनशील रहीं।

महिला अधिकारों के प्रति सजग और संवेदशील रुख के कारण उन्होंने कई ऐसे काम किये जिसकी नजीर आज काम आती है। इसी तरह का एक काम उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में देश का प्रतिनिधित्व करते हुए किया था। 1947-48 में उन्होंने मानवाधिकार आयोग के आर्टिकल 1 में अत्यधिक संवेदशीलता का परिचय देते हुए एक भाषागत सुधार किया था। पहले इस आर्टिकल में ‘ऑल मेन आर बाॅर्न फ्री एंड इक्वल’ लिखा था, किंतु हंसाबेन को ‘ऑल मेन’ शब्द पर आपत्ति थी। उन्होंने सभा में अपने तर्कों इसे संशोधित करने के लिए विवश कर दिया। आज इस आर्टिकल में ‘ऑल ह्यूमन बीइंग्स आर बाॅर्न फ्री एंड इक्वल’ लिखा हुआ। आगे चलकर 1950 में वे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की वाइस चेयरमैन भी बनीं।

हंसाबेन साहित्य अनुरागी भी थीं। उन्होंने गुजराती में बच्चों के लिए बाल साहित्य अनुवाद करने का चलन शुरू किया। हंसाबेन ने बाल कहानियों का संग्रह ‘बालवार्तावली’ तैयार की। इसके अतिरिक्त उन्होंने शेक्सपियर के नाटकों का गुजराती में अनुवाद किया। साथ ही साथ वाल्मीकि रामायण का गुजराती अनुवाद भी हंसाबेन ने किया। उन्होंने अंग्रेजी में तीन पत्रिकाएं वीमेन अंडर द हिदू लाॅ ऑफ मैरिज एंड सक्सेशन, सिविल लिर्बिटी और इंडियन वुमेन का संपादन कार्य भी किया। उनके तमाम योगदानों को देखते हुए उन्हें 1959 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। अपनी बहुत-सी भूमिकाएं निभाते हुए 4 अप्रैल 1995 को वे इस संसार से विदा हो गईं।

(लेखिका हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)