द्वितीय विश्व युद्ध के भारतीय नायकों को 77 साल बाद मिलेगा स्मारक

    05-Jul-2021 15:41:17 PM
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नई दिल्ली, 05 जुलाई (हि.स.)। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इटली को मुक्त कराने के लिए लड़ते हुए बलिदान देने वाले हजारों भारतीय सैनिकों को 77 साल बाद भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे श्रद्धांजलि देंगे। इनकी याद में दक्षिण-पूर्व प्रांत फ्रोसिनोन के मोंटे कैसीनो में बनाये गए भारतीय सेना स्मारक का आने वाले सप्ताह में जनरल नरवणे उद्घाटन भी करेंगे।
 
इस अभियान के दौरान कम से कम 5,782 भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी जिनके पार्थिव शरीर आज भी इटली में 06 प्रमुख शहरों के 40 कब्रिस्तानों में दफन हैं। इटली को आजाद कराने के लिए दिए गए 20 में से 06 विक्टोरिया क्रॉस भारतीय सैनिकों को मिले थे।
 
भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे 5 से 8 जुलाई तक यूनाइटेड किंगडम और इटली की चार दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर रवाना हुए हैं। जनरल नरवणे 5-6 जुलाई को यूके और 7-8 जुलाई को इटली की यात्रा पर रहेंगे। चार दिवसीय यात्रा के दौरान वह भारत से रक्षा सहयोग बढ़ाने के मकसद से इन देशों के अपने समकक्षों और वरिष्ठ सैन्य नेताओं से मुलाकात करेंगे। इटली की यात्रा के दौरान वह द्वितीय विश्व युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले 5,782 भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देंगे जो 77 साल बाद ऐतिहासिक क्षण होगा।
 
मोंटे कैसीनो में बनाये गए भारतीय सेना स्मारक का जनरल नरवणे उद्घाटन भी करेंगे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 से 1945 के बीच मुक्त कराये गए इतालवी कम्यूनों के बीच भारतीय सैनिकों के बलिदान और उनकी वीर गाथाएं अभी भी चर्चा में हैं। भारतीय सैनिकों के पार्थिव शरीर इटली के 06 प्रमुख शहरों कैसिनो, अरेज़ो, फ्लोरेंस, फोर्ली, संग्रो नदी और रिमिनी के 40 कब्रिस्तानों में दफन हैं।
 
इटली को आजाद कराने के लिए दिए गए 20 में से 06 विक्टोरिया क्रॉस भारतीय सैनिकों को मिले थे। भारत के शहीदों का उल्लेख यूके स्थित कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव कमीशन बुकलेट में भी किया गया है। इटालियन अभियान के दौरान ब्रिटिश और अमेरिका के बाद भारत का योगदान तीसरा सबसे बड़ा योगदान था।
 
भारतीय रक्षा मंत्रालय की सूची के अनुसार 19 सितम्बर, 1943 को नेपल्स के दक्षिण में टारंटो में लगभग 50 हजार भारतीय सैनिक पहली पार्टी के रूप में उतरे थे। इनमें से ज्यादातर 19 से 22 वर्ष की आयु के बीच उम्र के लिहाज से इतने छोटे थे कि वे खून, क्रूरता और मौत का खेल देखने लायक भी नहीं थे लेकिन इसके बावजूद इन्होंने 'इटली की मुक्ति' के लिए लड़ाई लड़ी।
 
मंत्रालय के अनुसार 29 अप्रैल, 1945 तक भारत के वीर मोंटे कैसीनो पर कब्जा करने की लड़ाई लड़ते रहे। इसके अलावा संग्रो नदी और लिरी घाटी के लिए लड़ाई, बोलोग्ना के पूर्वी तट के साथ सेनियो नदी को पार करने और गोथिक रेखाओं की लड़ाई में भी शामिल रहे।
 
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इतालवी धरती पर भारतीय सैनिकों की बहादुरी को रोम में भारतीय दूतावास ने लगभग 14 साल पहले प्रकाशित 'घर से दूर बहादुरी से लड़ने वाले युवा भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि' नामक पुस्तक में व्यापक रूप से दर्ज किया है।
 
इस पुस्तक में लिखा गया है कि अक्टूबर, 1943 के अंत तक मित्र राष्ट्र जर्मन रक्षात्मक स्थिति का सामना कर रहा था। जनवरी, 1944 में मित्र देशों की सेना को उतारा गया और आखिरकार 18 मई तक भारतीय सैनिकों की बदौलत कैसिनो को कब्जे में ले लिया गया। कैसीनो की लड़ाई में चौथी भारतीय डिवीजन ने भाग लिया और 4000 से अधिक सैनिक हताहत हुए।
 
पूर्व सैन्य इतिहासकार (अब दिवंगत) मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) यूस्टेस डिसूजा ने लिखा है कि चौथी भारतीय डिवीजन 'रेड ईगल्स' ने यूएस की 5वीं सेना के साथ लड़ाई लड़ी। इसे यूएस 5वीं सेना द्वारा शुरू किए गए मोंटे कैसीनो पर पहले के दो हमलों में तैनात किया गया था।
 
इसके अलावा 9वीं गोरखा बटालियन की वीरतापूर्ण लड़ाई हमेशा इसलिए भी जिन्दा रहेगी क्योंकि मठ की ओर जाने वाली पहाड़ी पर हुई खूनी मुठभेड़ के नाते आज भी इसे 'जल्लाद की पहाड़ी' कहा जाता है।
 
पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि कैसिनो युद्ध में शहीद 4,271 राष्ट्रमंडल सैनिकों के पार्थिव शरीर कब्रिस्तान में दफन हैं, जिनमें से 431 भारतीय सैनिक हैं। कब्रिस्तान के भीतर कैसिनो मेमोरियल खड़ा है, जो 4,000 से अधिक राष्ट्रमंडल सैनिकों की याद दिलाता है। इसके अलावा 1438 भारतीयों की कब्रों के बारे में पता नहीं है।
 
इटली में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लड़ने वाले भारतीय सैनिकों के सम्मान में 2007 में पहली बार कैसिनो में एक समारोह आयोजित किया गया था। इसमें तत्कालीन इतालवी उप रक्षा मंत्री एमिडियो कासुला और उस समय इटली में भारत के राजदूत राजीव डोगरा के अलावा कैसिनो, सैन मैरिनो और फेटानो के मेयर भी शामिल हुए थे।
 
इसके लगभग 12 साल बाद भारतीयों के बलिदान को एक बार फिर याद किया गया जब 29 मई, 2019 को फ्लोरेंस के पास प्रांतो में 1944 की लड़ाई में शामिल रहे दो सैनिकों हरि सिंह और पालू राम के अस्थि कलश एक समारोह में पेश किये गए। दरअसल पोगियो ऑल्टो में युद्ध के मैदान के भारतीय क्षेत्र से फ्लोरेंस के पास 1996 में इन दोनों सैनिकों के अवशेष पाए गए थे।
 
भारतीय सेना ने कहा कि डॉक्टरों की एक टीम ने दोनों सैनिकों के अवशेषों की जांच करके इनकी मृत्यु की तारीख, अवशेषों का स्थान, पहने हुए जूतों और इस्तेमाल किए गए गोला-बारूद के निष्कर्षों के आधार पर लापता सैनिकों के राष्ट्रमंडल रिकॉर्ड से मिलान किया गया। इसके बाद 4/13 फ्रंटियर फोर्स राइफल्स के हरि सिंह और पालू राम की पहचान हुई। दोनों सैनिकों की अस्थियों को उस फोर्ली युद्ध कब्रिस्तान में भी ले जाया गया जहां उनके अन्य साथियों को दफन किया गया है।
 
अब फिर भारतीय सैनिकों की बहादुरी और बलिदान की दास्तां एक बार फिर सुनाई जाएगी जब मोंटे कैसिनो में भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे भारतीय सेना स्मारक का उद्घाटन करेंगे जो भारत के निडर सैनिकों और उनके सर्वोच्च बलिदान की याद में बनाया गया है।
 
हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत