बिजली गिरने की घटनाओं में इतनी बढ़ोतरी क्यों?
रंजना मिश्रा आसमान से बिजली गिरना प्राकृतिक आपदा है, यह आपदा आजकल राजस्थान से उत्तर प्रदेश तक कई राज
रंजना मिश्रा


रंजना मिश्रा

आसमान से बिजली गिरना प्राकृतिक आपदा है, यह आपदा आजकल राजस्थान से उत्तर प्रदेश तक कई राज्यों में बेहद खतरनाक मंजर पैदा कर रही है। देश में सबसे ज्यादा मौतें बिजली गिरने से हो रही हैं। अनुमान है कि देश में हर साल 2000 से 2500 लोग आसमानी बिजली गिरने से मर रहे हैं। साल दर साल ये घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। सवाल यह उठता है कि भारत में बिजली गिरने की घटनाओं में इतनी बढ़ोतरी क्यों होती जा रही है? बारिश पहले भी होती थी लेकिन पहले इतनी बिजली नहीं गिरती थी। वो भी उत्तर भारत में बिजली गिरने की घटनाएं ज्यादा बढ़ रही हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2019 से मार्च 2020 तक भारत में 1 करोड़ 38 लाख बार बिजली गिरी और अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक एक करोड़ 85 लाख बार बिजली गिरी है, यानी एक साल में 47 लाख बार बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि हुई है या कह सकते हैं कि एक साल में 38% ज्यादा बिजली गिरी है। ये आंकड़ा पिछले कई सालों से बढ़ता जा रहा है। बिजली गिरने की घटनाएं पंजाब में एक ही साल में 331% ज्यादा हो गईं, बिहार में 168% ज्यादा हो गईं, हरियाणा में 164% और हिमाचल में 105% ज्यादा हो गई हैं।

आसमान में बादलों के बीच ज्यादा गर्मी और ज्यादा नमी के मिलने से थंडर क्लाउड बन जाता है और इसके कारण जमीन से ऊपर आसमान में 8 से 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर बादलों के बीच एक तूफान सा आता है। इससे बादलों के निचले हिस्से में नेगेटिव चार्ज पैदा होता है, बादलों के ऊपरी हिस्से में पॉजिटिव चार्ज होता है, इन दोनों नेगेटिव और पॉजिटिव चार्ज में दूरी कम होने पर बिजली तैयार हो जाती है। यही बिजली कंडक्टर की तलाश में धरती पर गिरती है, जिससे भयंकर नुकसान होता है। पेड़, इमारत, ऊंची पहाड़ी या टॉवर आदि आसमानी बिजली के गुड कंडक्टर बन जाते हैं और बिजली उनकी ओर खिंची चली आती है।

आसान शब्दों में हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जमीन पर पानी गर्म होता है तो भाप बनती है, जो ऊपर उठकर बादल बन जाती है, यानी बादलों में पानी होता है भाप के रूप में, ये बादल नीचे से भले ही रुई के बड़े-बड़े गोले लगते हैं, लेकिन वास्तव में ये भाप के पहाड़ होते हैं। इन भाप के पहाड़ों का नीचे का हिस्सा जमीन से एक किलोमीटर ऊपर होता है और ये आसमान में लगभग 10 किलोमीटर ऊपर तक भाप से भरे होते हैं। आसमान में ऊपर लगभग -40 डिग्री सेल्सियस की ठंड होती है, इसलिए भाप ऊपर उठते-उठते बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल जाती है और ये बर्फ के टुकड़े जितना ऊपर जाते हैं, उतने बड़े होते जाते हैं। यानी 10 किलोमीटर ऊंचा पहाड़ है, जो एक किलोमीटर ऊपर हवा में उड़ रहा है, उसमें नीचे भाप है, उसके ऊपर छोटी-छोटी बूंदे हैं, उससे ऊपर बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े हैं और उनके भी ऊपर बर्फ के मोटे-मोटे टुकड़े हैं, तो ऊपर के बड़े वाले टुकड़े बादल के अंदर ही भारी होने लगते हैं और नीचे गिरने लगते हैं, नीचे बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं, जिनसे बर्फ के बड़े टुकड़े रगड़ खाने लगते हैं। बर्फ के क्रिस्टल रगड़ने से बादलों में स्पार्किंग होती है, जिससे बिजली निकलती है, ये बिजली कोई छोटे-मोटे वोल्ट की नहीं बल्कि 100 करोड़ वोल्ट से 1000 करोड़ वोल्ट तक की होती है।

घर में लगा बिजली का प्लग 220 वोल्ट का होता है। बिजली चूंकि अर्थिंग ढूंढती है यानी धरती के कोर में जाने का रास्ता ढूंढती है तो बादलों में पैदा होने वाली बिजली का कुछ हिस्सा यानी कई करोड़ वोल्ट धरती की ओर भागते हैं और बादलों से नीचे आते वक्त जो भी सबसे ऊंची चीज चाहे वह पेड़ हो या कोई ऊंची इमारत या फिर कुछ और, उसी को पकड़ लेते हैं। इसका चांस कम रहता है कि बिजली सीधा किसी आदमी पर गिर जाए, लेकिन जैसे बाथरूम के गीले फर्श पर नंगे पैर खड़े होकर जब हम बिजली का साकेट छूते हैं तो करंट लगता है, उसी प्रकार बारिश में जमीन गीली होती है और ऐसे में जब आसमान से बिजली जमीन पर गिरती है तो उसके आसपास जो लोग खड़े होते हैं वे उसके शिकार हो जाते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। ईंधन जलाने से धरती का तापमान बढ़ा है। कोयला, पेट्रोल, डीजल जलाकर व फैक्ट्रियों की भट्ठियां जलाकर पिछले 100 सालों में हमने धरती को गर्म कर दिया है। इससे बारिश के मौसम में जमीन पर नमी रहती है, तो बादलों में स्पार्किंग होने पर बिजली को नीचे आने का रास्ता मिल जाता है, इसीलिए बिजली गिरने की घटनाएं आजकल ज्यादा हो रही हैं। यही वजह है कि जब जंगलों में आग लगने की घटनाएं होती हैं, उसके बाद भी बारिश में बिजली ज्यादा गिरती है। यह ग्लोबल वार्मिंग का बिजली गिरने की घटनाओं से रिश्ता है, अभी इस पर रिसर्च चल रही है लेकिन इतना साफ है कि ग्लोबल वार्मिंग से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ गई हैं।

हाल ही में उत्तर भारत में हुई बारिश के चलते लगभग 70 लोगों की जान आकाशीय बिजली गिरने से गई। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बिजली गिरने की सबसे ज्यादा घटनाएं बिहार में हुई हैं, जिसमें एक साल के अंदर बिहार में बिजली गिरने से 401 लोगों की मृत्यु हो गई। वहीं दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश का था, जहां बिजली गिरने से एक साल में 238 लोगों की जानें गईं। पूरे भारतवर्ष में बिजली कड़कने की घटनाओं में 34 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।

आसमान में जब बादल गरजें, बिजली कड़के, तब यह बेहद जरूरी है कि खुले आसमान के नीचे रहने या बिजली के किसी कंडक्टर के करीब आने से बचना चाहिए। बिजली कड़कने पर सावधान हो जाना चाहिए। आंकड़े बताते हैं कि बिजली कड़कने के दौरान पेड़ के नीचे शरण लेना सबसे खतरनाक है, क्योंकि बिजली गिरने से 71% तक मौतें पेड़ के नीचे खड़े होने वालों की हुई हैं। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि बिजली कड़कने के दौरान पेड़ के नीचे खड़े नहीं होना चाहिए। यह देखा गया है कि बिजली गिरने से मरने वालों में 25% या तो खेत में काम कर रहे थे, बकरियां चरा रहे थे या सड़क पर चल रहे थे। इसलिए बिजली गिरने के दौरान खुली जगहों पर ना रहें। 4 फीसदी लोगों की बिजली के अप्रत्यक्ष प्रहार से मौत हुई है, जैसे कच्चे घर या झोपड़ी के अंदर।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2018 के बीच 42,500 लोगों की मौत बिजली गिरने से हुई है। भारत के पूर्वी हिस्से जैसे उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तर पूर्वी राज्य सबसे ज्यादा बिजली गिरने से प्रभावित होते रहे हैं। अधिकांश मौतों की वजह आकाश से गिरने वाली बिजली को हल्के में लेना था। बिजली गरजे तो घर में रहने में ही भलाई है, अगर घर से दूर हैं तो पहाड़ी और ऊंचे इलाकों से दूर रहें, गाड़ी में बैठे हों तो खिड़कियां बंद रखें। तालाब, झील, पानी वाली जगहों से दूर रहें। बिजली गिरने के दौरान जमीन के बल कभी ना लेटें। चट्टान के नीचे शरण ना लें। बिजली के तारों से दूर रहें। ग्रुप में हों तो अलग हो जाएं।

आमतौर पर शहरों में जो इमारतें बनाई जा रही हैं, वो बिजली गिरने से नुकसान को टाल देती हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी दिखाई पड़ती है। यही कारण है कि बिजली गिरने से नुकसान के सिर्फ चार फीसदी मामले शहरों में होते हैं, जबकि 96 फीसदी नुकसान ग्रामीण इलाकों में होता है। इसलिए सावधानी में ही समझदारी है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)