...जब 19 साल के नौजवान ने बलराज को दिया अभिनय का मंत्र
अजय कुमार शर्मा यह बलराज साहनी के अभिनय कैरियर की शुरुआत के समय की ही बात है। वह "हमलोग" नाम की एक
बलराज साहनी


अजय कुमार शर्मा

यह बलराज साहनी के अभिनय कैरियर की शुरुआत के समय की ही बात है। वह "हमलोग" नाम की एक फिल्म कर रहे थे जिसे जिया सरहदी निर्देशित कर रहे थे और सेठ चंदूलाल शाह उसके निर्माता यानी प्रोड्यूसर थे। जिया सरहदी से बलराज की मुलाकात "बाजी" फिल्म की पटकथा लेखन के समय हुई थी। जिया सरहदी के सुझाव पर गुरुदत्त और उन्होंने बाजी फिल्म का क्लाइमैक्स फाइनल किया था।

जिया सरहदी ने बलराज को इप्टा (भारतीय जन नाट्य संस्था ) के नाटक "सड़क के किनारे" में अभिनय करते भी देखा था। इसी दौरान जिया सरहदी ने "हमलोग" की पटकथा लिखी थी। लेकिन अब तक दो-तीन फ़िल्में कर चुके बलराज के अंदर आत्मविश्वास की बेहद कमी थी और वे कैमरे से घबरा रहे थे। जबकि उनके साथ काम कर रहे अनवर हुसैन बहुत सरलता से कैमरे का सामना कर रहे थे।

एक दिन रास्ते में उन्होंने जिया से कहा कि भाई आप जो मुझ पर भरोसा कर रहे हैं मैं उसके काबिल नहीं हूं। तुम्हें बड़ी मुश्किल से यह फिल्म निर्देशित करने को मिली है, तुम मेरी जगह किसी और को ले लो मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूंगा। इसके जवाब में जिया ने बड़प्पन का सबूत देते हुए कहा कि बलराज साहब अब तो या इकट्ठे तैरेंगे या इकट्ठे डूबेंगे। इतनी सांत्वना के बाद तो बलराज को खुश होना चाहिए था लेकिन वे घर आकर पत्नी के सामने "मैं अभिनय नहीं कर सकता" कहते हुए फूट-फूट कर रोने लगे। तभी फिल्म का द्वितीय सहायक नागरथ वहां किसी काम से वहां आया, जिसकी उम्र महज 19 साल की थी। उसने उन्हें झिड़कते हुए कहा कि आप दूसरों से सौ गुना अच्छा अभिनय कर सकते हैं मगर तब तक नहीं जब तक कि आप अपने सामने खड़े कलाकार की शोहरत, उसकी प्रसिद्धि और अमीरी के नीचे दबे रहेंगे। असल में आपकी नजर भी अब कला की तरफ नहीं, दौलत की तरफ है। आपकी नजर में भी अब दौलत बड़ी चीज हो गई है। आप भी उसके प्रभाव से डरने लगे हैं जबकि आपको तो इससे नफरत करनी है।

नागरथ की यह बात मानो निशाने पर लगी। उसने उन्हें अच्छा अभिनय करने का रहस्य समझा दिया- नफ़रत। हर आदमी से नफ़रत। हर चीज से नफ़रत। पूरी जिंदगी से नफ़रत। बेहिसाब नफ़रत। असल में नागरथ ने भी बलराज को इप्टा के नाटक "सड़क के किनारे" में एक बेरोजगार और बीमार नौजवान का रोल करते देख चुका था । वहां वे उस रोल में बड़े जोशीले और प्रभावशाली ढंग से अपनी बात रखते थे और दर्शकों पर उसका गहरा असर होता था।

"हमलोग" फ़िल्म का रोल भी लगभग वैसा ही था और नफरत का मंत्र हाथ लगते ही जैसे उनके शरीर में गर्मी आ गई। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है ,"मेरी आत्मा पर नागरथ सूरज बनकर चमक उठा। 19 साल के एक नौजवान ने मेरी कठिनाई कैसे पहचान ली, यह सोचकर मैं आज भी हैरान होता हूं।" अगले दिन जब बलराज अपनी मोटरसाइकिल से स्टूडियो गए तो उनके आत्मविश्वास का जवाब नहीं था। वह दूसरे बलराज हो चुके थे। उन्होंने अपना मेकअप करवाने से भी इनकार कर दिया।

वहां जाते ही एक और चमत्कार हुआ जो डायलॉग वे बहुत समय में भी याद नहीं कर पाते थे और कई रिहर्सल करते थे, वह आज उन्हें अपने आप याद हो गए थे। फिल्म के डायरेक्टर जिया सरहदी ने उनको सीने से लगा लिया। सारी यूनिट खुश थी। वहीं खड़े उनके गुरु यानी नागरथ की आंखों में भी एक अलग चमक देखी जा सकती थी। इसके बाद तो मानो चमत्कार हो गया। उनका आत्मविश्वास ऐसा बढ़ा कि उन्होंने पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा। एक से एक यादगार रोल बड़ी सहजता के साथ करने लगे।

चलते-चलते

"हमलोग" फिल्म छह महीने में पूरी हुई। शुरू के चार हफ़्ते फ़िल्म हल्की रही पर बाद में बेहिसाब चली। चंदूलाल शाह ने एक नई नवेली हिलमैन मिंक्स कार ड्राइवर समेत जिया सरहदी को तोहफे के तौर पर भेंट की।