प्राचीन सभ्यता और संस्कृति में छिपी हैं तकनीकी विशेषताएं
-विश्व विरासत सप्ताह का समापन उदयपुर, 25 नवम्बर (हि.स.)। हड़प्पा जैसी प्राचीन सिंधुकालीन मानव सभ्यता
विश्व विरासत सप्ताह का समापन


-विश्व विरासत सप्ताह का समापन

उदयपुर, 25 नवम्बर (हि.स.)। हड़प्पा जैसी प्राचीन सिंधुकालीन मानव सभ्यता और मानव समाज में प्रचलित सांस्कृतिक परम्पराएं न केवल तकनीकी व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से खरी उतरती हैं, अपितु मानव समाज की मौजूदा समस्याओं का समाधान भी प्राचीन सभ्यताओं के अध्ययन में निहित है।

यह बात इनटेक के उदयपुर चैप्टर के कन्वीनर वरिष्ठ पुरातत्वविद डॉ. ललित पाण्डेय ने गुरुवार को कही। विश्व विरासत सप्ताह (19-25 नवम्बर) के समापन पर गोवर्धन विलास स्थित सेंट एंथोनी स्कूल में यंग इनटैक क्लब के छात्र-छात्राओं की ओर से प्राचीन मानव सभ्यता की संस्कृति, रहन-सहन, खेती-बाड़ी, जल प्रबंधन, अनाज भण्डारण आदि को लेकर बच्चों द्वारा बनाए गए मॉडल्स की प्रदर्शनी के अवलोकन के दौरान डॉ. पाण्डेय ने कहा कि हड़प्पा सभ्यता का गहराई से अध्ययन किया जाए तो वे हाइजीन का पूरा ध्यान रखते थे। स्वच्छता की सीख उनसे ली जाए तो कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। पानी की निकासी की सुदृढ़ व्यवस्था, सुरक्षित अनाज भण्डारण की तकनीक सहित कई बातें प्राचीन सभ्यताओं से सीखी जा सकती हैं और उन्हें आज के परिप्रेक्ष्य में उपयोग में लिया जा सकता है।

बच्चों द्वारा बनाए गए मॉडल्स की सराहना करते हुए उन्होंने सभी की हौसलाअफजाई की और कहा कि पुरातत्व भी एक विज्ञान है और नई पीढ़ी उसके महत्व को समझे इसलिए इनटेक की ओर से विभिन्न आयोजनों के माध्यम से ऐसे प्रयास किए जाते रहते हैं।

इस अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य विलियम डीसूजा ने बच्चों द्वारा बनाए गए मॉडल्स को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक दर्शाए जाने की जरूरत बताई। उन्होंने इनटेक के पदाधिकारियों से आग्रह किया कि यदि ये मॉडल जनता तक पहुंचेंगे तो ज्यादा से ज्यादा लोगों की प्राचीन मानव सभ्यताओं के विकास के विषय में रुचि बढ़ सकेगी।

इस अवसर पर इनटैक उदयपुर चैप्टर के को-कन्वीनर ‘वर्व’ संस्था के गौरव सिंघवी, विद्यालय के यंग इनटैक क्लब के जगदीश पालीवाल, अध्यापिका कमला थापा, स्नेहलता चौहान, अनिता चपलोत, लिपिका शाह, योगिनी दक आदि ने भी धरोहर संरक्षण के मद्देनजर ऐसे आयोजनों को बच्चों से लेकर बड़ों तक पहुंचाने की जरूरत बताई।

बच्चों ने हड़प्पा सभ्यता, लोथल से मिले पुरावशेषों, डांसिंग लेडी, पीपल वृक्ष की पूजा से जुड़े प्रकृति संरक्षण के संदेश, उत्खनन में प्राप्त आभूषणों, मोहरों, प्रतीक चिह्नों, नगरीय व्यवस्था आदि के मॉडल क्ले, पेपरमेशी, रंग-बिरंगे पत्थर-ईंटों आदि सामग्री का उपयोग करते हुए बनाए। कुछ बच्चों ने पेंटिंग भी बनाई। छात्रा चित्रांजली डामोर द्वारा पर्यावरण के महत्व को समझाते हुए पीपल के वृक्ष की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया तथा ओशिन सोलेमन ने सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तृत वर्णन किया।

हिन्दुस्थान समाचार/सुनीता कौशल/ ईश्वर