वास्तुशिल्प और स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है सिसई का कपिलनाथ मंदिर
- वास्तुशिल्प और स्थापत्य कला का अद्भुद उदाहरण है सिसई का कपिलनाथ मंदिर -1643 ईस्वी में नागवंशी राज
सिसई का कपिलनाथ मंदिर


- वास्तुशिल्प और स्थापत्य कला का अद्भुद उदाहरण है सिसई का कपिलनाथ मंदिर

-1643 ईस्वी में नागवंशी राजा राम साय ने कराय था मंदिर का निर्माण

-संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रही है भोलनाथ मंदिर की सुंदरता

खूंटी, 2 अक्टूबर (हि.स.)।

वैसे तो प्रकृति ने झारखंड को प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही कई धरोहर और धार्मिक स्थल दिये हैं, जो सदियों से लोगों की आस्था के केंद्र बने हुए हैं, लेकिन दुखद है कि इन ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण और विकास की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा है। इन्हीं प्राचीन धरोहरों में एक है गुमला जिले के सिसई प्रखंड के ऐतिहासिक नवरत्न गढ़ से किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाबा कपिलनाथ मंदिर।

मंदिर के खानदानी पुरोहित जर्नादन कुमार गिरि बताते हैं कि मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा राम साय ने संवत 1700 अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1643 ईस्वी में कपिलनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। जर्नादन गिरि बताते हैं कि स्थापना काला से ही उनका खानदान मंदिर में पूजा-पाठ करता आया है।

पुजारी बताते हैं कि कपिलनाथ मंदिर में सदियों से बाबा भोलनाथ की पूजा-अर्चना होती आयी है, लेकिन मंदिर में कोई शिवलिंग नहीं है। यहां एक पातालकुंड है। इस कुंड में कितनों ही जल या दूध भरा जाए, यह कभी नहीं भरता। उसी पाताल कुंड में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है। किंवदंति है कि नागवंशी राजाओं की राजधानी पहले खुखरा में थी। उस समय वहां के राजा राम साय थे।

बताया जाता था कि राजा की एक गाय थी, जो हर दिन सुबह घर से निकलकर इसी जगह की एक झाड़ी में आती थी और वहां एक बालक गाय का दूध पी जाता है। एक दिन राजा राम साय गाय का पीछा करते हुए उस स्थान पर पहुंचे और गाय को दूध पिलाते देख लिया। उसी समय जोरदार धमाके के साथ धरती वहां फट गयी और कुंड बन गया। उसी समय राजा राम साय ने वहां भगवान शिव का मंदिर बनाने का प्रण किया और संवत 1700 में एक साथ दो मंदिरों का निर्माण कार्य पूरा हुआ। राजा राम साय के भाई दुर्जन साय ने ही 70 साल के बाद नगर में ऐतिहासिक नवरत्न गढ़ का निर्माण कराया। गाय को संस्कृत में कपिला भी कहा जाता है। इसलिए मंदिर का नामकरण कपिलनाथ धाम किया गया।

450 साल पुराने मंदिर की नहीं हो रही देखरेख

मंदिर के पुजारी जर्नादन गिरि और उनके पुत्र बबलू गिरि और अविनाश गिरि कहते हैं कि कपिनाथ मंदिर 450 साल से भी पुराना है और शिल्पकला और स्थापत्य कला का बेजोड़ नमुना है। हर दिन वहां सैकड़ों भक्त पुूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। इसके बावजूद इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण और विकास के लिए प्रशासन या सरकार द्वारा कोई पहल नहीं की जा रही है। यहां तक कि न तो कपिलनाथ मंदिर तक और न ही नवरत्नगढ तक सड़क बनी। खराब सड़क के कारण लोग वहां जाने से कतराते हैं। पुजारियों का कहना है कि यदि सरकार इसके संवद्र्धन और संरक्षण पर ध्यान दे, तो यह झारखंड का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है।

हिन्दुस्थान समाचार/ अनिल