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-कृषि पर्यटन केंद्रों से ग्राम्य व शहरी जीवन को संदेश देना जरूरी
-अपनी पौराणिकता से अनजान है आधुनिक पीढ़ी
गुरुग्राम, 19 अक्टूबर (हि.स.)। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, हमारी पौराणिकता पीछे छूटती जा रही है। ऐसे ही अपनी परम्पराओं, पौराणिकता को अगर हम दूर करते रहे तो एक दिन यह सब हमसे बहुत दूर हो जाएंगी। ऐसे में ग्रामीण एवं शहरी युवाओं को कृषि प्रधान देश के जीवन के सभी क्षेत्रों में पारंपरिक और आधुनिक कृषि पारिस्थितिकी तंत्र से परिचित कराने की सख्त जरूरत है। यह कहना है प्रो. राम सिंह (पूर्व, निदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन और पूर्व, प्रमुख, कीट विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार) का।
कला, संस्कृति का गूढ़ ज्ञान रखने वाले प्रो. राम सिंह कहते हैं कि करीब चार दशकों से ग्रामीण पारिस्थितिकी तंत्र से शहरी वातावरण में जन शक्ति का बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। ज्ञान-आधारित सूचना प्रौद्योगिकियों के संयोजन में कृषि प्रौद्योगिकियों में ग्रामीण भौतिक प्रथाओं का बड़े पैमाने पर मशीनीकरण के लिए परिवर्तन शुरू चुका है। प्रो. सिंह वर्ष 1960 के मध्य से 2021 तक दोनों ग्रामीण और शहरी कृषि पर्यावरण के साक्षी हैं।
1970 से पहले होती थी जैविक व टिकाऊ खेती
प्रो. राम सिंह के मुताबिक वर्ष 1970 से पहले देश में हर जगह जैविक और टिकाऊ खेती होती थी। वर्तमान समय में बढ़ती मानव आबादी की खाद्य आवश्यकता को पूरा करने के लिए कृषि पद्धतियां अत्यधिक उत्पादक लेकिन एक स्तर बनाए रखने के लिए अपर्याप्त हैं। बैलों द्वारा की गई खेती टिकाऊ खेती थी और ट्रैक्टर द्वारा की हुई खेती पृथ्वी का दोहन करने वाली खेती है। प्रो. सिंह का कहना है कि यदि मानव जाति अपना कर्तव्य करने में विफल रहती है तो प्रकृति अपना संतुलन खुद बना लेगी। यह कथन न तो दार्शनिक है और न ही अव्यावहारिक, बल्कि एक कड़वा सत्य है।
संस्कृति से जुड़े शब्दों, सामग्रियों की है प्रासंगिकता
मानव जाति की स्थिरता कायम रखने को हमारी संस्कृति से जुड़े सभी शब्दों और सामग्रियों की आज भी बहुत प्रासंगिकता है। सभी शब्द और सामग्रियां कम लागत और टिकाऊ कृषि के लिए आवश्यक हैं। प्रो. राम सिंह का सुझाव है कि एक से दो हेक्टेयर सरकारी भूमि पर कम से कम हर 15 किलोमीटर के दायरे में गांवों के समूहों में कृषि पर्यटन केंद्र स्थापित किए जाएं, ताकि फसलों और सामग्रियों से हमें एकीकृत ग्रामीण पर्यावरण पारिस्थितिकी तंत्र का वास्तविक अर्थ समझने में मदद मिले। उचित योजना बनाकर ये कृषि पर्यटन केंद्र आत्मनिर्भर बन सकते हैं। पूरे राज्य में एक या दो केंद्र जनता को शिक्षित करने के लिए घोर अपर्याप्त हैं। प्रो. राम ङ्क्षसह की राय में आधुनिक इंसान को इच्छाओं और जनसंख्या पर नियंत्रण की अति आवश्यकता है।
हिन्दुस्थान समाचार/ईश्वर/संजीव