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वहीं संसदीय समिति की रिपोर्ट पर सरकार ने देश को हुए नुकसान पर खेद जताते हुए अपने बचाव में कहा कि हमने विशेषज्ञों के सुझाए उपाय के अनुसार काम किया।
151 पन्नों की इस रिपोर्ट में सांसदों की दो समितियों ने व्यापक जांच, लॉकडाउन व अन्य प्रतिबंधों को तेजी से लागू करने में सरकार को विफल बताते हुए कड़ी आलोचना की है। समिति ने संक्रमण के प्रसार से हर्ड इम्युनिटी हासिल करने संबंधी नीति को गलत बताया है।
रिपोर्ट के अनुसार अब स्पष्ट है कि यह गलत नीति थी, जिसके कारण प्रारंभ में अधिक मौतें हुईं। अगर शुरुआत में ही प्रभावी नीति बनाई गई होती, तो इन मौतों को टाला जा सकता था। हालांकि, जांच निष्कर्ष पहले ही लोगों की जानकारी में आ चुके थे, लेकिन यह ब्रिटेन की महामारी संबंधी कार्रवाई की पहली आधिकारिक जांच रिपोर्ट के रूप में सामने आई है।
जनवरी 2020 में ब्रिटेन में कोविड का पहला मामला आने के महीनों बाद शुरू हुई जांच का नेतृत्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद ने किया है, जिन्होंने रिपोर्ट में अपनी ही सरकार की विफलताओं का ब्योरा पेश किया है।
ब्रिटेन में कोरोना की वजह से मरने वालों का आधिकारिक आंकड़ा 1,62,000 है। पश्चिम के अन्य लोकतंत्र की तरह ब्रिटेन को भी महामारी के दौरान निजी आजादी और लॉकडाउन जैसे सख्त प्रतिबंधों के बीच संतुलन बैठाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। इसकी वजह से सरकार को शीर्ष स्तर पर अव्यवस्था का भी सामना करना पड़ा।
इस मामले पर कैबिनेट मंत्री स्टेव बार्कले ने बीबीसी रेडियो से कहा कि हमने चुनौतियों के दौरान जैसा किया, वैसा कोई अब भी नहीं कर सकता।
यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रमुख देवी श्रीधर ने कहा कि यह रिपोर्ट कोविड के नियंत्रण में ब्रिटिश सरकार की विफलताओं को उजागर करती है। इनमें व्यापक उपायों में देरी, हफ्तों तक जांच नहीं होना, फ्रंट वर्करों के लिए निजी सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) का अभाव व लॉकडाउन में विलंब आदि शामिल हैं। पीपीई का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि सरकार इससे कुछ सबक लेगी।
हिन्दुस्थान समाचार/अजीत तिवारी