किसानों के पास उपचार नहीं, कीटनाशक नहीं करता काम
धमतरी, 11 अक्टूबर (हि.स.)। खरीफ सीजन के तैयार धान फसल में लगी उकसा बीमारी के लिए किसानों के पास सालों बाद भी कोई उपचार नहीं है। कीटनाशक भी कोई काम नहीं करता, सीधे फसल बर्बाद हो जाती है। इसे लेकर कृषि विशेषज्ञों के पास भी कोई ठोस उपचार नहीं है। इन दिनों कई किसानों के खेतों में पांच से सात प्रतिशत उकसा की बीमारी लगी हुई है। बीमार पौधों की बालियां में 100 प्रतिशत धान बदरा है।
उकसा किसानों के लिए कोई नई बीमारी नहीं है। खरीफ व रबी सीजन में तैयार धान की बालियाें में यह बीमारी लगती है। कई कंपनियों के कीटनाशक दवा के छिड़काव के बाद भी किसानों को राहत नहीं है। इन दिनों किसानों की तैयार खरीफ धान फसल में पांच से सात प्रतिशत उकसा है। इससे फसल को बचाने किसान कई बार कीटनाशक का छिड़काव कर रहे हैं, फिर भी राहत नहीं मिल रही है। किसान हीरा सिंह साहू, कामदेव, राजेश कुमार, पुनारद राम का कहना है कि यह बीमारी सालों से उनके धान फसल में लगता है। आज तक इस बीमारी से बचाव के लिए कोई उपचार कृषि वैज्ञानिकों व अधिकारियों द्वारा नहीं ढूंढा गया है। यह बीमारी सभी गांवों के 95 प्रतिशत किसानों के धान फसल पर होता है। बालियां निकलने से कटाई तक किसान इससे बचाने कीटनाशक का छिड़काव करते रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं मिल पाता। उल्लेखनीय है कि इस बीमारी से कृषि विज्ञान केन्द्र संबलपुर में लगने वाली धान फसल भी सुरक्षित नहीं है। वहां भी पिछले साल अत्यधिक मात्रा में उकसा लगा हुआ था।
बोआई व रोपाई के समय करें फफूंदनाशक का उपयोग
कृषि विभाग के आत्मा योजना के विशेषज्ञ अधिकारी एफएल पटेल ने बताया कि उकसा चना व धान फसल में होता है। खेतों में धान की बालियां निकलने समय यह बीमारी होती है। इसी तरह चना फसल में भी चना के फूलने के समय यह बीमारी लगता है। दोनों फसल की बोआई के समय यदि फफूंदनाशक का उपयोग करें, तो काफी हद तक इससे राहत मिलती है। कुछ किसानों ने इसका उपयोग किया है, तो कुछ राहत है। यह पौधों के जड़ से शुरू होता है, जो धान के सभी बालियां को बदरा कर देता है। वहीं चना फसल को जड़ से खत्म कर देता है। ऐसे में बोआई व रोपाई के समय किसान खेतों में फफूंदनाशक का छिड़काव करें।
हिन्दुस्थान समाचार/ रोशन सिन्हा