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जोधपुर, 07 अगस्त (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने जालोर में एसीबी की टीम द्वारा की गई कार्रवाई में रिश्वत प्रकरण के आरोपी चंद्रकांत रामावत की एफआईआर रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस कुलदीप माथुर ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी और सह-आरोपी के बीच हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग से प्रथम दृष्टया रिश्वतखोरी में उसकी संलिप्तता का पता चलता है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 ए के तहत अभियोजन के लिए सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति, ऐसे मामलों में आवश्यक नहीं है, जहां इलेक्ट्रॉनिक सबूत मौजूद हों। दरअसल बृजेश मीणा नामक एक व्यक्ति ने 2 सितंबर 2022 को एसीबी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पास शिकायत दर्ज कराई थी। उसमें आरोप था कि चंद्रकांत रामावत और कस्तूरबा आवासीय स्कूल उम्मेदबाद की प्रिंसिपल खुशबू गहलोत ने उनके खिलाफ मिली एक शिकायत को निपटाने के लिए तीन हजार रुपए की रिश्वत की मांग की थी। एसीबी ने उस शिकायत पर कार्रवाई करते हुए जाल बिछाया और खुशबू गहलोत को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। बाद में इस मामले में चंद्रकांत रामावत को भी गिरफ्तार किया गया था।
इसी के खिलाफ याचिकाकर्ता चंद्रकांत ने अपने अधिवक्ता अंकुर माथुर व हर्षवर्धन थानवी के माध्यम से कोर्ट में दलील दी कि उन्हें झूठे तरीके से फंसाया गया है। कोर्ट ने केस डायरी का अवलोकन किया और पाया कि सह-आरोपी खुशबू गहलोत और याचिकाकर्ता के बीच बातचीत रिकॉर्ड की गई थी। इस बातचीत में खुशबू गहलोत ने अपने और चंद्रकांत रामावत दोनों के लिए रिश्वत स्वीकार करने की बात कही थी। कोर्ट ने इस टेलीफोनिक साक्ष्य को प्रथम दृष्टया आरोपी की संलिप्तता का संकेत माना। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिका में एफआईआर को रद्द करने का कोई आधार नहीं है और याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी के खिलाफ लगे आरोपों की सच्चाई का फैसला ट्रायल कोर्ट में सबूतों के आधार पर किया जाएगा।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश