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मंडी, 07 अगस्त (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम पैसेल में प्रदेश के नागरिकों और राज्य सरकार को पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके दायित्व का अहसास दिलाया है। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी बी.आर. कौंडल ने यहां पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उच्च न्यायलय ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों पर करारा प्रहार किया है। हाल ही में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पूनम गुप्ता और अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य केस के फैसले में सरकारी भूमि पर हुए कब्जों को लेकर कड़ा रूख अपनाते हुए अपने 44 पन्नों के महत्वपूर्ण फैसले में लोगों और सरकार दोनों को पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी से अवगत करवाया है।
उन्होंने बताया कि न्यायालय में भारतीय संविधान में लोगों की पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी जो कि अनुच्छेद 51-4 (6) में निहित है की याद दिलाते हुए कहा कि प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि जल, जंगल, जमीन, झीलें, हवा, नदियां, वन्य प्राणी और अन्य सभी जीवों के प्रति संवेदनशील रहें। वहीं पर उसकी रक्षा करने के प्रयास करें। उसी प्रकार राज्य को भी संविधान के अनुच्छेद 48- A के अंतर्गत यह जिम्मेदारी दी गई है।
वीरवार काे मंडी में पत्रकारों से बात करते हुए बीआर कौंडल ने कहा कि पर्यावरण जीवन के लिए अनिवार्य है और हमारे संविधान में हर नागरिक को जीने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार के रूप में दिया गया है। उन्होंने कहा कि सरकारी भूमि किसी व्यक्ति को इसलिए नहीं दी जा सकती कि उस पर उसने अतिक्रमण कर रखा है। जबकि अतिक्रमण करने वालों को भूमि देना संविधान के अनुच्छेद-14, के तहत कानून की नजर में समानता के अधिकार का भी उल्लंघन है। क्योंकि जो कानून की पालना करने वाले नागरिक है और सरकारी भूमि पर अतिक्रमण नहीं करते हैं उनको अतिक्रमण करने वालों की श्रेणी में खड़ा नहीं किया जा सकता ।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार की ओर से भूमि राजस्व अधिनियम के तहत राजस्व अधिकारियों को 90 के दशक में सिविल कोर्ट की पावर दी गई थी। लेकिन अपने इस फैसले में माननीय न्यायालय ने कहा कि राजस्व भूमि अधिनियम, 1954 की धारा-163 A को भी असंवैधानिक है । न्यायालय ने इस अधिनियम की धारा-163 (3) पर भी प्रश्न उठाया तथा सरकार को कहा कि हरियाणा राज्य बनाम मुकेश कुमार (2011) केस में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित फैसले के अनुसार अतिक्रमण करने वालों के विपरित कब्जा के अधिकार का फैसला करने के प्रावधान को संबंधित अधिनियम में संशोधन करके समाप्त करे ।
उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में 123835 बीघा जमीन पर 57,549 मामलों के चलते अवैध कब्जे के केस चल रहे हैं। जबिक वर्ष 90 के दशक में एक लाख 67 हजार आवेदन अवैध कब्जों को नियमित करने बारे किए गए थे। जो अभी फाइलों में दबे हुए हैं। उन्होंने बताया कि अदालत के इस फैसले से अवैध कब्जों का विरोध करने वालों के लिए कई संभावनाएं पैदा की गई है।
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हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा