रक्षाबंधन पर नाहन में जीवित है पतंगबाजी की परंपरा, 20 वर्षों से चरखियां बना रहे राजेश कुमार
नाहन में पतंगबाजी के लिए हाथों से तैयार की जा रही चरखियां


नाहन, 06 अगस्त (हि.स.)। रक्षाबंधन पर्व पर नाहन शहर में रियासतकाल से चली आ रही पतंगबाजी की परंपरा आज भी जीवित है, हालांकि आधुनिकता और डिजिटल युग की चकाचौंध में इसका आकर्षण पहले जैसा नहीं रहा। बावजूद इसके कुछ लोग इस परंपरा को जीवित रखने के लिए आज भी प्रयासरत हैं।

नाहन के वार्ड नंबर आठ रानीताल निवासी राजेश कुमार ऐसे ही एक शख्स हैं, जो बीते 20 वर्षों से पारंपरिक लकड़ी, बांस और बायरिंग से मजबूत व टिकाऊ चरखियां तैयार कर रहे हैं। यह हुनर उन्हें उनके दिवंगत पिता किशनचंद से विरासत में मिला जो खुद भी चरखियां बनाते थे। पिता की मृत्यु के बाद राजेश ने इस परंपरा को न केवल संभाला बल्कि बिना लाभ के भी इसे आगे बढ़ाया।

राजेश कुमार बताते हैं कि पहले रक्षाबंधन से दो महीने पहले ही शहर की हर छत पर पतंगें उड़ती थीं। युवाओं के झुंड पतंगबाजी में डूबे रहते थे और यह सिलसिला रक्षाबंधन के बाद भी चलता रहता था। लेकिन अब इंटरनेट और मोबाइल फोन के दौर में यह नजारा लगभग गुम हो गया है। उन्होंने बताया कि इस साल अभी तक एक भी चरखी नहीं बिकी है, फिर भी वह चरखियां बना रहे हैं क्योंकि उन्हें आत्मसंतुष्टि मिलती है और उम्मीद है कि रक्षाबंधन पर कुछ लोग इस परंपरा को निभाएंगे।

स्थानीय निवासियों का भी मानना है कि पतंगबाजी जैसे पारंपरिक खेल न केवल मनोरंजन हैं, बल्कि शारीरिक व्यायाम का भी अच्छा माध्यम हैं। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को मोबाइल से बाहर निकालकर इन गतिविधियों की ओर प्रेरित करना चाहिए।

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हिन्दुस्थान समाचार / जितेंद्र ठाकुर