सुप्रीम कोर्ट का फैसला आदिवासी समाज की परंपरा के विपरीत : प्रकाश ठाकुर
प्रकाश ठाकुर


जगदलपुर, 6 अगस्त (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट का एक फैसले में कहा गया है कि आदिवासियों में भी महिलाओं को संपत्ति का अधिकार मिलना चाहिए, उक्त फैसला कॉस्टमरी लॉ के विपरीत है। फैसले से आने वाले समय में परेशानी हो सकती है। छत्‍तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज बस्तर के संभागीय अध्यक्ष एवं अधिवक्ता प्रकाश ठाकुर ने बुधवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह बात कही है। उन्हाेंने कहा कि उक्त फैसला पर न्यायालय को एक बार और तर्क व तथ्यों के साथ अपने फैसला को देखना चाहिए। क्योंकि इस फैसले से आने वाले समय में पूरे देश में घर-घर में गृह युद्ध छिड़ने की प्रबल संभावना को नाकारा नहीं जा सकता है। घर-घर में झगड़ा होंगे, कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पड़ेंगे, समाज केवल कोर्ट के चक्कर काटते रह जाएंगे. इसलिए माननीय सुप्रीम कोर्ट को अपने इस फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए।

प्रकाश ठाकुर ने कहा कि गोंड समाज की परंपरा (कॉस्टमरी ला) में महिलाओं को अपने पति की संपत्ति पर 100 प्रतिशत अधिकार होता है। पति की मृत्यु पर पत्नी के नाम पर फौजदारी, फौती काट कर जमीन पत्नी को चली जाती है। पत्नी की मृत्यु के बाद ही उनके बच्चों के नाम पर संपत्ति स्थानांतरित होती है। बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा परंपरागत रूप से नहीं दिया जाता, क्योंकि कुल वधू प्रथा के अनुसार बेटी दूसरे कुल की सदस्य मानी जाती है। और जहां बिहाई जाती है वहां उन्हें 100 प्रतिशत मालकिन का दर्जा प्राप्त है। इसीलिए गोंड समाज में दहेज प्रथा शून्य प्रतिशत है, भूण हत्या नहीं होती है, महिला पुरुष में कोई असमानता नहीं है।

प्रकाश ठाकुर ने बताया कि काठी मौत मिट्टी के भी सभी रस्मों को महिला ही निभाती हैं। गोंड समाज में लड़का वाला लड़की ढूंढने जाता है। गोंड समाज में कोर्ट शादी वर्जित है, जिसे समाज में मान्यता नहीं है। क्योंकि वो रस्मों रिवाज मरने के बाद कुंडा नेग में शामिल होने के लिए जरूरी होता है। वहीं दूसरी ओर आदिवासी समाज की परंपराओं और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। समाज इस पर गहन चिंतन मनन कर सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी जिसके लिए ट्राइबल लीगल एड विंग इंडिया से लगातार चर्चा परिचर्चा जारी है।

उन्हाेंने बताया कि समाज की प्रमुख आपत्तियां हैं -

- यह फैसला गोंड समाज की कस्टमरी लॉ (रुदि प्रथा विधि) के विपरीत है।

- इससे घर-घर में संपत्ति विवाद और झगड़े बढ़ सकते हैं।

- महिलाओं पर पारिवारिक दबाव और शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना की आशंका।

- अदालतों में मुकदमों की बाढ़ आने की संभावना, जिससे वर्षों तक सुनवाई लंबित रहेगी।

- समाज की पुरानी और संतुलित परंपराएं टूटने का खतरा, जिससे दहेज और भ्रूण हत्या, जैसी अमानवीय प्रथाएं पनप सकती हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे