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हरिद्वार, 19 जुलाई (हि.स.)। श्रावण मास का कांवड़ मेला अब अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। डाक कांवड़िए चारों ओर दिखाई पड़ने लगे हैं। इसके साथ ही मोटरसाइकिल वाले कांवड़िये भी पहुंच रहे हैं। श्रावण मास में जग नियंता भगवान शिव अपनी ससुराल दक्ष नगरी कनखल में पूरे महीने निवास करते हैं और यहां से ब्रह्मांड का संचालन करते है।
पौराणिक मान्यता है कि कांवड़ यात्रा का प्रारंभ भगवान परशुराम ने किया था। उन्होंने ही अपनी माता रेणुका की हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए हरिद्वार से पहली कांवड़ उठाई थी। भगवान परशुराम ब्रह्म कुंड हर की पौड़ी से कांवड़ में जल भरकर पुरा महादेव मेरठ ले गए थे। परशुराम भगवान ने अपनी कांवड़ में गंगा की रेती के साथ-साथ भगवान शिव के प्रतीक गंगा जी के पत्थर भी ले गए थे, लेकिन जब वह इन पत्थरों को लेकर कांवड़ उठाकर चलने लगे तो पत्थर विलाप करने लगे जिस पर भगवान परशुराम ने उन्हें वचन दिया वह प्रतिवर्ष हरिद्वार से गंगाजल लाकर उनका अभिषेक करेंगे। तभी से श्रावण मास का कांवड़ मेला प्रचलित है। लेकिन समय के साथ-साथ इसका स्वरूप भी बदलता चला गया। सन 60 तथा 70 के दशक में कांवड़ मेले का जो स्वरूप था वह लगातार बदलता जा रहा है। जहां 60 के दशक में कांवड़िये परंपरागत वेशभूषा में बांस के डंडे पर दोनों और बांस की टोकरी में गंगा की रेती व पत्थर तथा कुशा घास के ऊपर कांच की छोटी-छोटी शीशी में गंगाजल लेकर लोकगीत गाते हुए रवाना होते थे। वहीं 80 और 90 के दशक में इसमें बहुत परिवर्तन आ गया।
90 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन के कारण चली हिंदुत्व की प्रचंड लहर ने कांवड़ यात्रा का स्वरूप ही बदल दिया। पहले जहां यह संख्या सैंकड़ों में होती थी, राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद लाखों में पहुंच गई। बड़ी-बड़ी कांवड़ों का दौर शुरू हो गया। इसके साथ ही बैठी कांवड़ खड़ी कांवड़ जैसी कठिन और कष्टप्रद कांवड़ भी शुरू हो गई।
सन 2020 के बाद तो डाक कांवड़, बड़े-बड़े डीजे, म्यूजिक सिस्टम के साथ-साथ कांवड़ियों का उग्र प्रदर्शन भी सामने आने लगा। कांवड़ियों द्वारा लगातार हिंसक प्रदर्शन तोड़फोड़ ने जहां प्रशासन की जान सांसत में डाले रखी। वहीं स्थानीय नागरिकों को भी भयंकर स्थिति का सामना करना पड़ता था।
कावड़ मेले में तो प्रशासन को भीमगोडा, खड़खड़ी क्षेत्र के कई होटल ही बंद कराने पड़ते थे। वर्तमान में निरंतर रूप बदलती कांवड़ एक नए ट्रेंड में अवतरित हुई है, जहां पहले लेटी कांवड़, खड़ी कांवड़ जैसी कठिन यात्रा होती थी। अब बड़े-बड़े स्टील के कलश, प्लास्टिक के केन में 100 लीटर 200 लीटर यहां तक की 500 लीटर तक जल ले जाने की होड़ मची हुई है। हालांकि अत्यधिक थकान भारी वजन के चलते कई कांवड़िये रास्ते में हिम्मत हार जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद इनकी संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है।
इन कांवड़ियों को सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचाना भी प्रशासन के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है। बहरहाल अभी तक कांवड़ मेला सुरक्षित व निरापद रूप से चल रहा है और जिला तथा पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से व्यवस्थाओं में जुटा हुआ है।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला