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चेन्नई, 10 जून (हि.स.)। तमिलनाडु में कृषि क्षेत्र से गैर-कृषि क्षेत्र की नौकरियों में श्रमिकों के स्थानांतरण में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। यह प्रवृत्ति ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यापक परिवर्तन को दर्शाती है, जो आर्थिक उदारीकरण, तकनीकी प्रगति और मांग के बदलते पैटर्न जैसे कारकों से प्रेरित है। जैसे-जैसे राज्य की अर्थव्यवस्था में विविधता आ रही है, वैसे-वैसे अधिक श्रमिकों को विनिर्माण, निर्माण और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।
ग्रामीण गैर-कृषि रोजगार (NFE) का उदय इस बदलाव का एक प्रमुख चालक रहा है, जो श्रमिकों को रोजगार के अधिक विकल्प प्रदान करता है। गैर-कृषि रोजगार में छोटे पैमाने पर विनिर्माण, निर्माण, सेवाएं और व्यापार जैसी गतिविधियां शामिल हैं। जबकि यह प्रवृत्ति ग्रामीण विकास और आय विविधीकरण के अवसर प्रस्तुत करती है, यह नौकरी की सुरक्षा, काम करने की स्थिति और वेतन असमानताओं से संबंधित चुनौतियां भी पेश करती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि क्षेत्रों के विकास से स्थानीय उद्योगों का विकास हो सकता है, जिससे क्षेत्र के भीतर आर्थिक संबंध बन सकते हैं और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि, ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्रों में श्रमिकों का बढ़ता आकस्मिकीकरण चिंता का विषय है, क्योंकि कई श्रमिकों को कम वेतन और सामाजिक असुरक्षा के साथ असुरक्षित नौकरियों का सामना करना पड़ रहा है।
तमिलनाडु में गैर-कृषि रोजगार की ओर बदलाव ऐसी नीतियों की आवश्यकता को उजागर करता है जो नौकरी की सुरक्षा और सामाजिक संरक्षण को बढ़ावा देती हैं। श्रम स्थितियों में सुधार, सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और नौकरी की सुरक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकारी पहल ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक टिकाऊ श्रम बाजार बनाने में मदद कर सकती है। इन चुनौतियों का समाधान करके और अवसरों का लाभ उठाकर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि विविध अर्थव्यवस्था से समाज के सभी वर्गों को लाभ हो।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ आर बी चौधरी