शिक्षित बेटियां आंतरिक शक्ति और प्रतिभा से भारत-माता का बढ़ाएंगी गौरव: राष्ट्रपति
पतंजलि विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति द्रोपति  मुर्मु सहित अन्य  अतिथि।


राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु  हरिद्वार पतंजलि विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह को संबोधित करती।


पतंजलि विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति ने विद्यार्थियाें काे दिए मेडल और उपाधियां

हरिद्वार,, 2 नवंबर (हि.स.)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि हरिद्वार स्थित पतंजलि विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति ने कहा कि उपाधि पाने वाले विद्यार्थियों में 64 प्रतिशत संख्या बेटियों की हैं, जो पदक प्राप्त करने वाले छात्रों की तुलना में चौगुनी है। यहां शिक्षा प्राप्त कर रहे कुल विद्यार्थियों में बेटियों की संख्या 62 प्रतिशत है। यह केवल संख्या नहीं है, यह महिलाओं के नेतृत्व में आगे बढ़ने वाले विकसित भारत का अग्रिम स्वरूप है। मुझे विश्वास है कि हमारी शिक्षित बेटियां अपनी आंतरिक शक्ति और प्रतिभा से भारत-माता का गौरव बढ़ाएंगी।

राष्ट्रपति मुर्मु रविवार को पतंजलि विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह काे संबाेधित कर रही थीं। राष्ट्रपति मुर्मु ने छात्र व छात्राओं काे उपाधि और मेडलप्रदान की। उन्होंने विद्यार्थियों की प्रशंसा करने के साथ ही उनके जीवन-निर्माण में सहभागी अध्यापकों और अभिभावकों को भी शुभकामनाएं दी। इस माैके पर राष्ट्रपति ने कहा कि उपाधि पाने वाले विद्यार्थियों में 64 प्रतिशत संख्या बेटियों की हैं, जो पदक प्राप्त करने वाले छात्रों की तुलना में चौगुनी है। यहां शिक्षा प्राप्त कर रहे कुल विद्यार्थियों में बेटियों की संख्या 62 प्रतिशत है। यह केवल संख्या नहीं है, यह महिलाओं के नेतृत्व में आगे बढ़ने वाले विकसित भारत का अग्रिम स्वरूप है। साथ ही, यह भारतीय संस्कृति की उस महान परंपरा का विस्तार है, जिसमें गार्गी, मैत्रेयी, अपाला और लोपामुद्रा जैसी विदुषी महिलाएं समाज को बौद्धिक और आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करती थीं। मुझे विश्वास है कि हमारी शिक्षित बेटियां अपनी आंतरिक शक्ति और प्रतिभा से भारत-माता का गौरव बढ़ाएंगी।

राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि लोक-परंपरा में ‘हरि’-द्वार का यह परम पावन क्षेत्र ‘हर’-द्वार के नाम से भी जाना जाता है। इस परंपरा के अनुसार, यह पवित्र स्थान ‘हरि’ यानी विष्णु के दर्शन का द्वार भी है और ‘हर’ यानी शिव के दर्शन का भी द्वार है। ऐसे पवित्र भूखंड में देवी सरस्वती की आराधना करने वाले विद्यार्थी और आचार्य बहुत सौभाग्यशाली हैं। हिमालय के इस अंचल से अनेक पवित्र नदियां तो निकलती ही हैं, यहां से ज्ञान-गंगा की अनेक धाराएं भी प्रवाहित होती हैं। उनमें इस विश्व-विद्यालय की एक अविरल धारा भी जुड़ गई है। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की महान विभूतियों ने मानव-संस्कृति के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया है। मुनियों में श्रेष्ठ, महर्षि पतंजलि ने योग के द्वारा चित्त की, व्याकरण के द्वारा वाणी की और आयुर्वेद के द्वारा शरीर की अशुद्धियों को दूर किया। उनको विनीत होकर, करबद्ध प्रणाम करने की हमारी परंपरा है।

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय महर्षि पतंजलि की महती परंपरा को आज के समाज के लिए सुलभ कराया जा रहा है। योग एवं आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में इस योगदान की सराहना करती हूं। राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि विश्व बंधुत्व की भावना, प्राचीन वैदिक ज्ञान, नूतन वैज्ञानिक अनुसंधान का समन्वय और वैश्विक चुनौतियों का समाधान को विश्वविद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक संदर्भों में आगे बढ़ा रहा है। विश्वविद्यालय के छात्र व शिक्षक सब इस ज्ञान-यज्ञ के गौरवशाली सहयोगी हैं। उन्होंने कहा कि वसुधैव कुटुंबकम् का हमारा सांस्कृतिक आदर्श पृथ्वी एवं मानवता के समग्र कल्याण से अनुप्राणित है। उन्हाेंने कहा कि विश्वविद्यालय में योग एवं आयुर्वेद के शिक्षण को प्रमुखता दी जाती है। साथ ही, विज्ञान एवं अध्यात्म के समन्वय से शांतिपूर्ण जीवनशैली को अपनाने का मार्गदर्शन दिया जाता है। शिक्षा का यह मार्ग आपके जीवन-निर्माण में सहायक है तथा हमारे पूरे समाज के लिए कल्याणकारी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता के एक अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण ने दैवी सद्गुणों और समृद्धियों के विषय में भी बताया है। उन्होंने दैवी सद्गुणों में ‘स्वाध्याय: तप आर्जवम्’ को शामिल किया है। स्वाध्याय का अर्थ है– निष्ठापूर्वक अध्ययन एवं मनन। तप का अर्थ है– कष्ट सहते हुए भी अपने कर्तव्य का पालन करना। आर्जवम् का अर्थ है– अन्तःकरण एवं आचरण की सरलता। दीक्षांत के बाद भी, स्वाध्याय की प्रक्रिया में आजीवन संलग्न रहना है। तपस्या और सरलता, जीवन को शक्ति देने वाले मूल्य हैं। सभी विद्यार्थी-गण स्वाध्याय, तपस्या एवं सरलता के जीवन-मूल्यों को अपनाकर अपने जीवन को सार्थक बनाएंगे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति-निर्माण से परिवार-निर्माण होता है। परिवार-निर्माण से समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है। एक संस्कार-वान व्यक्ति में साहस और शांति का संगम होता है। इस विश्वविद्यालय ने व्यक्ति-निर्माण से राष्ट्र-निर्माण का मार्ग अपनाया है। इसके लिए, मैं विश्वविद्यालय से जुड़े सभी लोगों की सराहना करती हूं। मुझे विश्वास है कि इस विश्वविद्यालय के पूर्व, वर्तमान व भावी विद्यार्थी सदाचार के साथ स्वस्थ समाज एवं विकसित भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।

हिन्दुस्थान समाचार / विनोद पोखरियाल