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रामनगर , 2 नवंबर (हि.स.)। श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन भगवान श्रीकृष्ण विवाहोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कथा आचार्य सत्यम ने भगवान श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी जी के दिव्य विवाह प्रसंग का सुंदर वर्णन किया। उन्होंने कहा कि रुक्मिणी विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। जब वे छोटी थीं, तभी उन्होंने महर्षि नारद से भगवान श्रीकृष्ण के अद्भुत चरित्रों और लीलाओं के विषय में सुना था। उसी क्षण से उनके हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अटल प्रेम और भक्ति जाग उठी थी । उस दिन से लेकर विवाह तक रुक्मिणी जी ने कृष्ण को ही अपने जीवन का परम लक्ष्य मान लिया। उन्होंने ठान लिया कि वे केवल श्रीकृष्ण से ही विवाह करेंगी और किसी अन्य से नहीं।
कथा व्यास ने आगे कहा कि जब उनके भाई रुक्मी ने उनका विवाह शिशुपाल से करने का निश्चय किया तब भी रुक्मिणी डगमगाई नहींं । उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को पत्र लिखकर उन्हें विदर्भ आकर अपने हरण करने का अनुरोध किया। उनका प्रेम भक्ति का सर्वोच्च उदाहरण है जिसमें प्रेम, समर्पण और निष्ठा तीनों समाहित हैं।
विवाह में बारातियों के रूप में सजे-धजे भक्तों ने नाचते-गाते हुए भक्ति उल्लास का अद्भुत वातावरण निर्मित किया। आचार्य सत्यम ने बताया कि जब प्रेम सच्चा और भक्तिभाव से परिपूर्ण होता है, तब भगवान स्वयं अपने भक्त की रक्षा हेतु उपस्थित होते हैं और उसका वरण करते हैं। इस अवसर पर यजमान आशीष कुमार,निशा,मीनाक्षी देवी,गिरजा शंकर,इंद्र मणि, बाबा विशंभर दास, दीपा पटेल रवी वर्मा,पंडित राकेश ,शशि कांत, आनंद शर्मा, शुसील तिवारी आदि मौजूद रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / पंकज कुमार चतुवेर्दी