रासायनिक खेती के कारण घट रही जैविक कार्बन की मात्रा, प्राकृतिक खेती से मिट्टी में आयेगी ताकत
-उद्यान के निदेशक ने कहा, केंचुआ खेती के लिए काफी लाभदायक लखनऊ, 25 जनवरी (हि.स.)। खेतों में जैविक क
उद्यान निदेशक।


-उद्यान के निदेशक ने कहा, केंचुआ खेती के लिए काफी लाभदायक

लखनऊ, 25 जनवरी (हि.स.)। खेतों में जैविक कार्बन 2.5 से पांच प्रतिशत तक फैला हुआ है, लेकिन इस बार इसकी मात्रा घटकर लगभग .5 प्रतिशत है। इसका कारण यह है कि रसायन युक्त खेती। लगभग बीस वर्षों से की जा रही रासायनिक खेती के कारण खेतों के लिए प्राकृतिक मित्र केंचुए नदारद हो गए हैं। इसे पुन: पाने के लिए हमें प्राकृतिक खेती की ओर मुड़ना होगा।

ये बातें उद्यान विभाग के निदेशक डी. आर के तोमर ने कही। उन्होंने बताया कि जब मिट्टी अपने मूल भाव में होती है तो 1000 करोड़ जीवाणु प्रतिग्राम मिट्टी में मिल जाते हैं। यही जीवाणु और केंचुए अपने कार्य से और मरने के बाद भी लगभग 90 प्रतिशत आवश्यक पोषक तत्व जमीन में 15 फुट की गहराई से ऊपर के रूट के पास सूचित करते रहते हैं। शेष 10 प्राथमिक तत्व लेग्युमिनस रूट्स से और संरेखण की मल्चिंग से आपूर्ति की जाती है।

उन्होंने कहा कि जीवामृत, घना जीवामृत और बीजामृत से तो केवल जामन की तरह जीवाणुओं की संख्या बढ़ाई जाती है। यह जीवाणु सबसे अधिक देशी गाय के मित्र गोबर में मिल जाता है। एक ग्राम गोबर में 300-500 करोड़ लाभकारी जीवाणु होते हैं। इसलिए बाजार से कुछ भी खरीदार पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए कुछ भी नहीं देते हैं। मानव निर्मित यंत्रों से खेत की जूताई -गुड़ाई करने से केंचुए, जीवाणु व कीड़े मकोड़े, चींटियां, दीमक (किसान मित्र है) आदि मर जाते हैं ।

डा. आरके तोमर ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि जमीन में गहरायी पर जाने पर तत्वों की मात्रा बढ़ती जा रही है, जो कि खनिज राज्य में हैं। ये उपलब्ध अवस्था में आने का कार्य यही केंचुए आपके पेट में व जीवाणु करते हैं। दुनिया भर में जितनी गहरी जुताई करने वाले यंत्र अभी मानव ने बनाया ही नहीं है। कुछ लोग गो-आधारित खेती का दावे करते हैं। रासायनिक खेती करने वाले किसान तो अपने खेत में गोबर व कंपोस्ट की खाद यथा संभव डालता ही है, इसलिए वह गोबर आधारित तो पहले से ही कर रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र